वृष लग्न कुंडली में सूर्य का फलादेश : प्रथम भाव में सूर्य
वृष लग्न कुंडली में सूर्य प्रथम भाव में – केंद्र तथा शरीर भाव में शत्रु शुक्र की राशि में होने के प्रभाव से जातक को माता, भूमि, मकान इत्यादि का सामान्य सुख प्राप्त होता है तथा शारीरिक सौंदर्य में कुछ कमी रहती है।
यहाँ से सूर्य अपनी सातवीं दॄष्टि से सप्तमभाव को मंगल की वृश्चिक राशि में देख रहा है, अतः जातक को स्री तथा व्यवसाय के पक्ष में सुख, सफलता तथा प्रभाव की प्राप्ति होगी।
वृष लग्न कुंडली में सूर्य का फलादेश : द्वितीय भाव में सूर्य
वृष लग्न कुंडली में सूर्य द्वितीय भाव में – धन-कुटुंब के भाव में अपने सम ग्रह बुध की मिथुन राशि में स्थित सूर्य के प्रभाव से जातक को धन-संपत्ति तथा कुटुंब का सुख प्राप्त होता है, परन्तु माता के सुख में कुछ कमी बानी रहती है और भूमि-मकान आदि का सुख प्राप्त होते हुए भी उसका श्रेष्ठ उपयोग नहीं हो पाता।
यहाँ से सूर्य अपनी सातवीं दॄष्टि से अष्टमभाव को देख रहा है अतः जातक को आयु एवं पुरातत्व का लाभ होता है तथा दैनिक जीवन में भी सुख प्राप्त होता है।
वृष लग्न कुंडली में सूर्य का फलादेश : तृतीय भाव में सूर्य
वृष लग्न कुंडली में सूर्य तृतीय भाव में – अपने समग्रह चंद्र की राशि में स्थित होने से जातक को माता, भूमि, मकान आदि घरेलु सुख की प्राप्ति होती है। तृतीयभाव में उष्णस्वभावी ग्रह अधिक शक्तिशाली होता है, अतः जातक अपने पराक्रम द्वारा सफलता एवं सुख अर्जित तथा उसमे वृद्धि करता रहेगा।
इस भाव से सूर्य अपनी सातवीं दॄष्टि से नवमभाव को देखने के कारण जातक को भाग्योन्नति के लिए कठोर परिश्रम करना पड़ेगा तथा धर्म का पालन करने में भी कुछ लापरवाहियां करेगा।
वृष लग्न कुंडली में सूर्य का फलादेश : चतुर्थ भाव में सूर्य
वृष लग्न कुंडली में सूर्य चतुर्थ भाव में – स्वराशि स्थित होकर जातक को अपनी माता तथा भूमि, मकान, संपत्ति आदि का पूर्ण सुख प्राप्त होता है तथा घरेलु जीवन उल्लासपूर्ण बना रहता है। तेजस्वी सूर्य के प्रभाव से ऊपरी दिखावा अत्यधिक रहने पर भी जातक के मन में थोड़ी बहुत अशांति बनी रहेगी।
यहाँ से अपनी सातवीं दॄष्टि से दशमभाव को देख के जातक को पिता, व्यवसाय तथा राज्य के पक्ष में असंतोष देता है एवं कठिनाई के साथ सफलता एवं प्रतिष्ठा प्राप्त होगी।
वृष लग्न कुंडली में सूर्य का फलादेश : पंचम भाव में सूर्य
वृष लग्न कुंडली में सूर्य पंचम भाव में – अपने समग्रह बुध की कन्या राशि पर स्थित सूर्य अपने प्रभाव से जातक को विद्या तथा संतान के पक्ष में वृद्धि एवं सुख की प्राप्ति होगी। ऐसा जातक गंभीर स्वभाव वाला बुद्धिमान तथा दूरदर्शी होता है। घरेलु जीवन भी सुख शांति एवं प्रसन्नतापूर्ण बना रहता है।
इस भाव से सूर्य अपनी सातवीं दॄष्टि से अपने मित्र गुरु की मीन राशि के एकादश भाव को देखता है, अतः जातक की आमदनी के साधन भी अच्छे बने रहते है एवं उसे लाभ प्राप्त होता रहता है।
वृष लग्न कुंडली में सूर्य का फलादेश : षष्ठ भाव में सूर्य
वृष लग्न कुंडली में सूर्य षष्ठ भाव में – अपने शत्रु शुक्र की तुला राशि पर स्थित होने से जातक को शत्रु पक्ष से कठिनाइयाँ प्राप्त होती रहती है, परन्तु सूर्य जो उष्णग्रह है वह नीच का होकर भी शत्रुओ के ऊपर जातक का प्रभाव बनाये रखेगा। ऐसा जातक माता तथा भूमि, मकान आदि का सुख काम पाता है और उसे अपनी जन्मभूमि से दूर जाकर रहना पड़ता है।
इस भाव से सूर्य अपनी सातवीं दॄष्टि से द्वादश भाव को देखता है, अतः जातक का खर्च अधिक रहता है और उसे बाहरी स्थानों के सम्बन्ध से सुख प्राप्त होता रहता है।
वृष लग्न कुंडली में सूर्य का फलादेश : सप्तम भाव में सूर्य
वृष लग्न कुंडली में सूर्य सप्तम भाव में – अपने मित्र मंगल की राशि में होने से जातक स्री तथा व्यवसाय के क्षेत्र में सुख एवं सफलता प्राप्त करेगा। साथ ही उसे माता, भूमि का लाभ होता है।
इस भाव से सूर्य लग्न को देखता है जो की शत्रु शुक्र की राशि है, जिसके कारण जातक के शारीरिक सौंदर्य में कुछ कमी रह सकती है तथा पारिवारिक सुख साधनो में कुछ कमी रहेगी जिसके लिए जातक को विशेष परिश्रम करना पड़ेगा तथा ह्रदय में थोड़ी बहुत अशांति भी बनी रहेगी।
वृष लग्न कुंडली में सूर्य का फलादेश : अष्टम भाव में सूर्य
वृष लग्न कुंडली में सूर्य अष्टम भाव में – अपने मित्र गुरु की धनु राशि में होकर जातक को अपने जन्मभाव से दूर रहना पड़ता है, तथा माता एवं भूमि के सुख में भी कमी आती है, साथ ही पारिवारिक सुख में भी विघ्न उत्पन्न होते रहते है। परन्तु सूर्य सुखेश होकर अष्टमभाव में स्थित होकर जातक को आयु एवं पुरातत्व का लाभ अवश्य देते है।
यहाँ से अपनी सातवीं दॄष्टि से दूसरे भाव को देख कर जातक को कुटुंब का सुख देता है तथा धन की वृद्धि करने में सफल बनता है।
वृष लग्न कुंडली में सूर्य का फलादेश : नवम भाव में सूर्य
वृष लग्न कुंडली में सूर्य नवम भाव में – अपने शत्रु शनि की मकर राशि में स्थित होने से जातक को माता तथा भूमि भाव आदि के सम्बन्ध में कुछ असंतोष तथा परेशानियों के साथ सफलता प्राप्त होती है, परन्तु घरेलु सुख एवं भाग्य की वृद्धि भी होती रहती है।
यहाँ से अपनी सातवीं दॄष्टि से तृतीय भाव को देखने के कारण जातक के पराक्रम में वृद्धि होती है तथा भाई-बहन का सुख भी मिलता है। ऐसी ग्रह स्थिति वाले जातक को अपने बुद्धि बल तथा पराक्रम के द्वारा ही सफलता मिलती है पर असंतुष्टि के साथ।
वृष लग्न कुंडली में सूर्य का फलादेश : दशम भाव में सूर्य
वृष लग्न कुंडली में सूर्य दशम भाव में – अपने शत्रु शनि की कुंभ राशि में स्थित होने से जातक को पिता तथा राज्य के क्षेत्र में कुछ कठिनाइयों के साथ सफलता मिलती ह।
यहाँ से सूर्य अपनी सातवीं दॄष्टि से चतुर्थभाव को देख रहा है जिसके प्रभाव से जातक को माता के सुख एवं पारिवारिक सुख में वृद्धि होती है।
वृष लग्न कुंडली में सूर्य का फलादेश : एकादश भाव में सूर्य
वृष लग्न कुंडली में सूर्य एकादश भाव में – अपने मित्र गुरु की मीन राशि पर स्थित होने से जातक को आमदनी के क्षेत्र में विशेष सफलता प्राप्त होती है। इसके साथ ही माता भूमि भाव तथा कुटुंब का सुख भी पर्याप्त मात्रा में प्राप्त होता है।
यहाँ से पंचम भाव पर सातवीं दॄष्टि से देखने क कारण जातक की संतान तथा विद्या एवं बुद्धि के पक्ष में वृद्धि होती है तथा जीवन आनंदपूर्वक व्यतीत होता है।
वृष लग्न कुंडली में सूर्य का फलादेश : बारहवे भाव में सूर्य
वृष लग्न कुंडली में सूर्य बारहवे भाव में – अपने मित्र मंगल की मेष राशि में स्थित होकर जातक का खर्च अधिक होता है तथा बाहरी स्थानों का सम्बन्ध सुखदायक होता है परन्तु माता के पक्ष में कुछ कमी भी बनी रहती है। ऐसा जातक यदि अपने जन्मस्थल को छोड़कर अन्य जगह रहे तो उसे विशेष लाभ होता है।
यहाँ से सूर्य अपनी सातवीं दॄष्टि से षष्ठ भाव को देखता है अतः जातक को शत्रु पक्ष से हानि होती रहती है।
Disclaimer: कुंडली के अन्य ग्रहो के प्रभाव से इस फलादेश में बदलाव आ सकता है, कृपया अपनी संपूर्ण कुंडली को जांचे और परखे। हमसे भी संपर्क कर सकते है – Know Your Kundli; Rule Your Life
This article has been written from Bhrugu Samhita – Falit Prakash.
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